बसपा अपने रिश्तेदारों को पार्टी से दूर करने के बाद मायावती बदले अंदाज में राजनीति करती नजर आ रही हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि वह कांशीराम के पैटर्न पर चल पड़ी हैं। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने संगठन को एकजुट करने तथा पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए ओबीसी समाज को जोड़ने की मुहिम चलाने की शुरुआत कर कार्यकर्ताओं को नया संदेश दिया है। बसपा के संस्थापक कांशीराम की तर्ज पर उन्होंने इस बार अपने परिजनों को दरकिनार करते हुए पार्टी कैडर को प्राथमिकता दी है। जानकारों की मानें तो बसपा द्वारा ओबीसी समाज को जोड़ने के लिए गांव-गांव चलाया जाने वाले अभियान से पार्टी को नई ऊर्जा मिल सकती है।बता दें कि बीते करीब दो साल से बसपा तमाम उठापटक से जूझ रही है। बसपा सुप्रीमो द्वारा आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी बनाने के बाद दो बार हटाने के निर्णय से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा, जिसका असर तमाम चुनावों में देखने को मिला। बसपा सुप्रीमो ने पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी और आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ को भी पार्टी से बाहर कर दिया। साथ ही, भविष्य में पार्टी से जुड़े अहम फैसलों में नाते-रिश्तों की परवाह नहीं करने का रास्ता चुना। इसका प्रभाव हालिया ओबीसी समाज की विशेष बैठक में भी देखने को मिला, जिसमें बसपा सुप्रीमो ने केवल पाटी कैडर के समर्पित पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को बुलाया और उन्हें अहम जिम्मेदारियां सौंपी। उन्होंने यह भी कहा कि जो पार्टी के प्रति समर्पित होकर कार्य करेगा, भविष्य में उसे ही आगे बढ़ाया जाएगा।लंबे अर्से के बाद कोई अभियानबसपा ने लंबे अर्से के बाद कोई अभियान शुरू करने की घोषणा की है। दरअसल, पार्टी के कैडर कैंपों के आयोजन के बावजूद जनाधार बढ़ने की जगह कम होता जा रहा था। पार्टी नेता कैडर कैंप आयोजित करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे थे। अब गांव-गांव अभियान चलाने से बसपा का बिखरा वोट बैंक फिर से संगठित हो सकता है। इसमें युवाओं को खास तवज्जो दी जाएगी, ताकि नई पीढ़ी को तैयार किया जा सके। बसपा सुप्रीमो ने खासकर महिलाओं को इस अभियान में शामिल करने का निर्देश भी दिया है।